सित॰ 23, 2025, के द्वारा प्रकाशित किया गया: अभिराज सिन्धानिया

माँ ब्रह्मचारिणी का दिव्य अर्थ और इस नवाच्छा में उनका स्थान
छत्र Navratri 2025 के दूसरे दिन हम माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना करते हैं, जो देवी पार्वती की वैधवधु रूप है। वह दृढ़ संकल्प, आत्म‑शुध्धि और एकाग्रता की प्रतिमूर्ति मानी जाती हैं। उनका नाम ‘ब्रह्मचर्य’ शब्द से आता है, जो जीवन में संयम और शुद्धता का प्रतीक है। जब आप उनकी प्रसन्नता के लिये सच्ची भक्ति दिखाते हैं, तो यह ऊर्जा आपके भीतर धैर्य और स्पष्ट बुद्धि को जागृत करती है।
वास्तव में, माँ ब्रह्मचारिणी ने कठोर तपस्या करके ही शिव जी को अपने जीवन साथी बनाया था। यही कारण है कि उनकी पूजा से साधक को कठिन परिस्थितियों को धीरज से सहन करने की शक्ति मिलती है। अगर आप आज की तेज़‑रफ़्तार ज़िन्दगी में संतुलन ढूँढ रहे हैं, तो इस देवता के पास जाने से मन को शांति मिल सकती है।

पूजा विधि, कालश स्थापना और विशेष मंत्र
पूजा का समय सुबह के शुद्ध जल से नहाने के बाद शुरू करें। सबसे पहले अल्टर को गंगा जल से शुद्ध करें और माँ को सौम्य संगीत के साथ स्वागत करें। नीचे दी गई सूची में आवश्यक सामग्री और उनके क्रम को देखें:
- शुद्ध जल (गंगा जल), सफ़ेद कपड़े, काजल
- चमेली का फूल, सफ़ेद स्नानिक (सफ़ेद फूल)
- दूध, दही, शहद से अभिषेक
- कुंद दूध, चावल और चंदन का मिश्रण (कुपी)
- शर्करा या केसरिया लड्डू (भोग)
काली शिला (कालश) की स्थापना भी इस दिन के अनिवार्य भाग में से एक है। एक उथला मृत्तिकाकुंड (clay pan) लेकर उसमें तीन परतें चिकनी मिट्टी की डालें। फिर सात विभिन्न अनाज (जौ, चावल, गेंहू, मक्का, बाजरा, ज्वार, आदि) के बीज डालें और हल्का पानी छिड़कें। यह फसल प्रतीक रूप में उर्वरता और समृद्धि को दर्शाता है।
कालश के बीच में एक कलश रखें, जिसमें गंगा जल, बीज, सिक्के, अक्षत (हल्दी मिलाकर कच्चा चावल) और दुर्वा घास भरें। कलश के ऊपर लाल कुमकुम से स्वस्तिक बनायें और पाँच आम के पत्ते घोंसले के चारों ओर स्थापित करें। कलश को नारियल से ढकें, जो लाल कपड़े में लिपटा हो और पवित्र धागे से बांधा हो। इस व्यवस्था के साथ एक अखण्ड ज्योति (अंतहीन दीप) जलायें, जो नौ दिन तक नहीं बुझेगा।
छत्र Navratri 2025 के इस विशेष दिन पर मनाए जाने वाले मंत्रों को रोज़ दोहराना फायदेमंद रहेगा। मुख्य मंत्र है:
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
ध्यान मंत्र, जो ध्यान के दौरान उच्चारित किया जाता है:
दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
और स्तुति मंत्र, जो समस्त भक्तियों को समेटे हुए है:
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
इन मंत्रों को साफ़ मन से जपें और आँत्रों में लकीरें गहरी करके पढ़ें; इससे मन की शांति और आत्म‑विश्वास में वृद्धि होगी।
भोजन के तौर पर शुद्ध शर्करा (जैसे गुड़ की लड्डू या शहद) का भोग तैयार करें, क्योंकि इसका रंग सफ़ेद और मिठास पवित्रता का प्रतीक है। सफ़ेद वस्त्र पहनना न भूलें; यह वह रंग है जो इस दिन की शुद्धता को दर्शाता है। चमेली के फूल, सफ़ेद सूत और शुद्ध जल से सजावट पूरी करें, जिससे संपूर्ण माहौल ईश्वरीय बन जाए।
छत्र Navratri 2025 का समय 30 मार्च से 7 अप्रैल तक विस्तृत है और यह रामा नवमी के साथ समाप्त होता है। इस अवधि में महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा और कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में उगादी जैसे नववर्ष के उत्सव भी साथ चलते हैं। इन सभी त्योहारों का संगम इस नवरात्रि को विशेष चमक देता है, जिससे आध्यात्मिक अभ्यास, व्रत और कथा‑पाठ का महत्व बढ़ जाता है।
सारांश में, माँ ब्रह्मचारिणी का द्वितीय दिवस न केवल धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि आत्म‑विकास एवं मन की शांति के लिये एक सुनहरा अवसर भी है। इस दिन की पूजा‑पद्धति, कालश स्थापना और मंत्रों के माध्यम से आप अपने जीवन में संयम, धैर्य और आध्यात्मिक उन्नति ला सकते हैं।
लेखक
अभिराज सिन्धानिया
मेरा नाम अभिराज सिन्धानिया है। मैं मीडिया और समाचार विषय पर विशेषज्ञता रखता हूं। सोशल मीडिया और मीडिया के बारे में लेखन करना मेरी प्राथमिकता है। मैं समाज के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने और लोगों के विचार और मतलब समझने में विशेष रुचि रखता हूं। मेरी लेखन शैली में मैं विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण और स्पष्टता का उचित मिश्रण बनाने की कोशिश करता हूं।